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कविता

जिम्मेदारियाँ

विमल चंद्र पांडेय


वक्त बीतने के साथ जैसे घटता है
बालों का घनत्व
गुस्से का परिमाण
और हडि्डयों का कैल्शियम
उसी तरह या किसी दूसरे पैटर्न पर बदलता है
जिम्मेदारियों का रूप और उनका धर्म
कल आवारा कहा जाने वाला लड़का
आज झुला रहा है अपनी बेटी को अपनी बाँहों के झूले में
मेली गुलिया, मेली बिटिया
कल की संकोची लड़की आज मॉडलिंग के शूट में अधनंगी बैठी
जरा भी असहज महसूस नहीं कर रही
जस्ट टेक दिस शॉट इमिडिएटली
पहली चोरी के बाद स्कूल से निकाला गया बालक
बीसवें कत्ल के लिए झाड़ियों के पीछे घात लगाए बैठा है
इस बार निशाना नहीं चूकेगा भाऊ, एनिहाऊ
पिछले चुनाव में हारने के बाद इस बार
पूरे तामझाम के साथ दौरे पर निकला है पूर्व मंत्री
और तेज चलो रामसुभग, तीन गाँव करने हैं
जैसे अपने आप बदल जाती है बाहर आने जाने की आवृत्ति
खाने का चार्ट
पुराने टीवी कार्यक्रम
दोस्तों के पते और फोन नंबर
वैसे ही शर्ट, जूते या चश्मे का नंबर जैसी फालतू चीजें बदलते ही
हम पाते हैं कि जिम्मेदारियाँ भी बदल गई हैं
हम कभी बड़े नहीं होते
लेकिन ये हमें रंग लेती हैं अपने रंग में
और हमें चीजों को वाजिब अभिनय के साथ बरतना सिखाती हैं
जिम्मेदारियाँ मौत की तरह आती हैं
अचानक, चुपचाप, दबे पाँव

 


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